kumbh Mela Stampede Story Railway Station Azam Khan: जब कफन के लिए रातभर भटकते रहे लोग:अचानक ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदला, भगदड़ में 36 मारे गए; आजम खान ने दिया इस्तीफा

kumbh Mela Stampede Story Railway Station Azam Khan: मौनी अमावस्या का दिन और कुंभ का माहौल 10 फरवरी 2013, मौनी अमावस्या का पावन दिन था। प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन अपने चरम पर था। संगम में डुबकी लगाने के लिए लाखों श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचे थे। अनुमान था कि उस दिन तीन करोड़ से अधिक लोगों ने संगम में स्नान किया। लेकिन इस धार्मिक आयोजन की पवित्रता उस समय भयावह त्रासदी में बदल गई, जब रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मच गई।

प्लेटफॉर्म नंबर 6 पर कैसे मचा कोहराम?

संध्या के समय करीब साढ़े सात बजे, प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर प्लेटफॉर्म नंबर 6 यात्रियों से पूरी तरह भरा हुआ था। अचानक घोषणा हुई कि ट्रेन अब प्लेटफॉर्म नंबर 6 पर नहीं, बल्कि किसी अन्य प्लेटफॉर्म पर आएगी। यह सुनते ही लाखों श्रद्धालु ओवरब्रिज की तरफ भागने लगे।

फुटओवर ब्रिज पहले ही भीड़ से भरा हुआ था। ऐसे में जब और लोग उस पर चढ़ने लगे, तो वहां पैर रखने की भी जगह नहीं बची। रेलवे पुलिस ने हालात काबू में करने के लिए लाठीचार्ज कर दिया, जिससे हालात और बिगड़ गए। लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगे और भगदड़ मच गई।

लाशें बिखरीं, घायलों की चीख-पुकार

जब भगदड़ थमी, तो प्लेटफॉर्म पर लाशों का ढेर लग गया। महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे सब इस हादसे की चपेट में आ गए। कुल 36 लोगों की मौत हुई, जबकि सैकड़ों लोग घायल हो गए।

झारखंड के प्रसाद यादव, जो इस हादसे में गंभीर रूप से घायल हुए, ने बाद में बताया, “मुझे लगा कि मैं अपनी आखिरी सांसें ले रहा हूं। चारों तरफ चीख-पुकार और अफरा-तफरी का माहौल था।”

आपातकालीन सुविधाओं की कमी

इस हादसे ने प्रशासन की लापरवाही को उजागर कर दिया। प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर किसी भी प्रकार की इमरजेंसी चिकित्सा सुविधा मौजूद नहीं थी। घायल लोगों को इलाज के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा। ऑक्सीजन सिलेंडर खाली पड़े थे, और स्ट्रेचर समय पर नहीं पहुंचा।

कुछ लोग अपने परिजनों की लाशें लेकर भटकते रहे। कफन तक खरीदने के लिए उन्हें हजारों रुपए खर्च करने पड़े।

रेलवे की लापरवाही कैसे बनी हादसे की वजह?

उस दिन प्रयागराज जंक्शन पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कोई प्रभावी योजना नहीं बनाई गई थी। नवाब यूसुफ रोड, जो संगम से प्लेटफॉर्म नंबर 6 तक जाता है, को ब्लॉक नहीं किया गया था। स्नान करके लौटने वाले श्रद्धालु इस तरफ आने लगे, जिससे प्लेटफॉर्म पर भीड़ लगातार बढ़ती गई।

ऊपर से, ट्रेनों के समय में देरी ने स्थिति और गंभीर बना दी। यात्रियों का धैर्य टूट रहा था। प्लेटफॉर्म बदलने की घोषणा ने मानो आग में घी डालने का काम किया।

मेला प्रशासन का असफल प्रबंधन

इस हादसे के बाद यूपी सरकार और कुंभ मेले के प्रभारी मंत्री आजम खान पर सवाल उठे। हालांकि, उन्होंने अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया, लेकिन उन्होंने मीडिया पर यह आरोप लगाया कि “मीडिया की रिपोर्टिंग से स्थिति और भयावह हो गई।”

यूपी सरकार ने मृतकों के परिजनों को 5 लाख रुपए और घायलों को 1 लाख रुपए मुआवजा दिया। रेलवे की तरफ से भी मृतकों के लिए 1 लाख रुपए की सहायता राशि दी गई।

इतिहास में कुंभ मेले की अन्य भगदड़ें

यह पहली बार नहीं था, जब कुंभ मेले में ऐसी भगदड़ मची हो। अंग्रेजों के समय से लेकर आजादी के बाद तक, कई बार ऐसे हादसे हुए हैं:

  • 1820, हरिद्वार कुंभ: भगदड़ में 450 से अधिक लोगों की मौत।
  • 1954, प्रयाग कुंभ: 1,000 से अधिक श्रद्धालु भगदड़ की चपेट में आकर मारे गए।
  • 1986, हरिद्वार कुंभ: मुख्यमंत्री के स्नान के लिए रास्ता रोकने के कारण भगदड़, 50 की मौत।
  • 2003, नासिक कुंभ: साधु द्वारा चांदी के सिक्के फेंकने से भगदड़, 39 लोगों की जान गई।

क्या सीखा जा सकता है?

इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि इतने बड़े आयोजनों में प्रशासनिक लापरवाही कितनी घातक हो सकती है। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी योजनाओं की जरूरत है। रेलवे और मेले के अधिकारियों को इमरजेंसी प्रबंधन के लिए बेहतर तैयारी करनी चाहिए।

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